Thursday, March 31, 2022

साथ

 

साथ
साँस लेते उजालों से बनी
नींद की नीली झील में
एक आराम सा उबारता अपनापन

साथ
गुनाह की सी एक लज्जत
सन्नाटे की गद्देदार गोद सा
संगीत  एक टीस भरे चैन सा

तुमको जब देखता हूँ....

एक उम्र से तराशा साथ
एक झिझकते समझौते सा ताकतवर
एक रोज़मर्रा  तिलिस्म सा आरामदेह
एक ज़िंदा खनकता ख़्वाब
एक आदत जो रोज़ चौंकाती है

तो सोचता हूँ

ये साथ
मेरे बहुत क़रीब है
ज़रूरी है 
मेरे होने की शर्त सा 

27 April, 2021

गुम सी हो गयी ग़ज़ल

 

गुम सी हो गयी ग़ज़ल
बुरा तो ये
कि
बुरा भी नहीं लगता

दिल  तो आज भी छिलता होगा
खनकती बारिशें आज भी भिगोती होंगी
रागों का सन्नाटा आज भी भरता होगा चाँद पर कई सागर

ये दर्द
ये उन्माद
ये आह्लाद
थकाता तो है
छलक कर बहता नहीं है

कविता उफनते देखी थी
कुंठा, अपमान, प्रेम और
भूखी मुलायमियत के बाज़ार में

कविता मरते भी देखी थी
संतुष्टि, व्यस्तता और
पठार होते चेतन पर

जो नहीं देखा था
वो था
रंगों का रंगत खो देना
सपनों का गफ़लत खो देना
पाप की मादकता का फीका पड़ जाना

आत्मा में  आदतों के रेगिस्तान कब झबरे होने लगे
प्यार की अधपकी मिट्टी का आवारापन कब विनीत स्थापत्य बन गया
नयी चौंकाती खोजें रोज़मर्रा जैसा ठहराव कब से देने लगीं
हृदय की वीरान बांबी के कुलबुलाते सर्प  कब से सभ्य हो गए

ब्रह्मांड के बाहर से जब भी देखता हूँ
उत्सव अवसाद खामोशी और आकर्षण के प्रेत वैसे ही मदनोत्सव मनाते दिखते हैं

उलझन सी मेरे होने की सच्चाई में भी  
सूत्र,  दंशहीन गफ़लत  और आदत मेला तो लगाए रखेंगे 

पर

ग़ज़ल गुम हो गयी है
और
बुरा तो ये
कि
बुरा भी नहीं लगता ।

31 मार्च 2022

कभी रहते थे एक महल में

 

कभी रहते थे एक महल में
शायद आज भी रहते हैं
पर फिर मेरा ये घर मुझ से बात क्यों नहीं करता
क्यों इसकी हमेशा सोंधी रहने वाली दीवारें
पिघलते नशे के ग़ीलेपन को छोड़
सूखे लावे के टापू जैसी महसूस होती हैं

शून्य सघन पाप सा चुभता ये महल
सपाट दिनचर्या का थका आश्रय कब बन गया
एक पगलाई झुंझुलाई सी सुंदरता
आदतनुमा आराम में कब बदल गयी

चिंता होती है
अपनी किश्तों में मुरझाती आत्मा की
रोज़ एक नया कतरा मुर्दा मरुस्थल बन जाता है

और एक जीवन है
जो रोज़ छोटे होते इस मैदान को नया नवेला ब्रह्मांड मान
नयी बाज़ी लगाता है
डर है
कहीं समझदारी इस भरम पे भी भारी न हो जाए।


12 Aug 2020

ढहने लगते हैं मेरे होने के महल

 ढहने लगते हैं मेरे होने के महल

जब छलकता है कोई सूना सा प्रश्नचिन्ह
उन इत्मिनान के कोहरों में 
जिनका पिघलता संगीत 
तुम्हारे होने के मेलों की तरफ़ से आता है।

तुम्हारी बारिशों की उदार खनक 
मेरे ख़्वाबों में साँस लेता इंतेज़ार भर तो देती  हैं 
पर मेरी उम्मीदें बुलंद हैं 
तुम्हारी बेरुख़ी की वफ़ाओं में 

शिकायतों के सायों ने 
सुस्त ऊँघते समझौतों ने 
सींच तो रखे हैं कुछ घबराए से खंडहर 
चुप्पियों से गहरी बंबियों में 
जहां हम तुम मिलते हैं 
अपने सबसे उदास दिलों को उठाए हुए 

ये गहराई ही अब सच है 
मिल कर जी खड़ा होता अधूरापन 
स्पर्श जो कई ब्रह्मांडों  का सन्नाटा समेटे
मुस्कुराहट जो सूखी आग की बर्फ़ से बुनी

करोड़ों लरजती ख़ुशियों का मदमाता धुआँ मद्धिम 
जब जाग सिहरता है एक गूँगा जादू 
इन सर्द उदासियों के शर्माते झरनो  का 

8 June 2020

घिर आते हो कई तुम- एक तुम्हारे न होने में

 

कुफ़्र का भी एक लुत्फ़ है
लुट जाने का भी एक मज़ा,
भरे हैं शराबों के समंदर 
एक इस प्यास में मर जाने में 

तुम एक पुल अधूरा टूटे आसमानों में 
पूरी कायनात है हासिल तुम्हें न पाने में 
रोशनी की छलकती परछाईं हो तुम मयखानों में 
ड़ुबोय देता हैं नशा ये रेशमी तुमसे दूर जाने में  

गुँधे हुए हैं करोड़ों वस्ल 
एक तुमसे जुदा हो जाने में 
घिर आते हो कई तुम
एक तुम्हारे न होने में। 

हो सके तो बुन लेना कुछ हसीन नग़मे 
हमने अपनी आहों के मेले बिछा रखे हैं
माना की तुम सुर हो मेरी सहमी हसरतों का 
हमने भी खामोशी के बियबाँ बसा रखे हैं

अख़्तियार नहीं तुम्हारी बेरुख़ी पे
पर ख़ूब बादशाह हैं हम अपनी बेबसी के 
चरचे बहुत  हैं इस बेरुख़ी की गहराइयों के
लिए फिरते हैं हम भी कई मक़बरे ख़्वाबों की रानाइयों के 

अगस्त 2, 2020

तुम्हारे न होने से लीपा हुआ मेरा होना

 तुम्हारे न होने से लीपा हुआ 

मेरा होना,
पिघलता उजड़ता 
स्मृति का पिंजर,
यादों के चिथड़े बटोरती
मेरे चैन की मृगतृष्णा।

शोक होता नहीं,
बस जाता है 
हड्डियों में, कपड़ों में, किवाड़ों में
एक साथी की तरह 
कई बार एक चैन भरी गोद सा 

आप तो हो नहीं
आपके शोक का ही सहारा
इतना गहरापन तो 
आपकी तस्वीर में
आपके शोक में भी है

रहो मेरे साथ 
चाहे न होने का डंक बन कर ही ।

बहुत दिन हुए तुम्हें सोच रोया नहीं 
क्यों लगता है मुझे कि पूरा जिया नहीं 

तुमको भूलना अपनी लज्जत खोना सा है 
दिल का एक कोना काठ का हुआ सा है 

इतना तो पता था की कुछ नाशुकरे हैं हम 
क्या ख़ुद के भी इतने बड़े दुश्मन हुए हैं हम 

मन नहीं है तुम्हारे बिना जीने की आदत
डालें 




27 May 2020

दूरियाँ पुलों सी होती हैं

 

दूरियाँ पुलों सी होती हैं 

शब्दों के अर्थों सी 
एक भी
विलग भी 

सलाख़ों के बीच का ख़ालीपन 
बातों के बीच का मौन 
मेरे सच और तेरे सच के बीच का आसमान 
मेरे होने और तुम्हारे होने के बीच का ये अमीर ख़ालीपन
मेरे दर्द और मेरी कविता के बीच का रूठा सच 

ये दूरी ही तो बुनती हैं 
नज़दीकियों का 
मायनों का 
मिलने का 
वो खिलखिलाता बोलता सन्नाटा

दूरियाँ पुलों सी होती हैं। 

4 April, 2021